आचार्य महावीर प्रसाद ने जीवन मूल्यों का बोध कराया

प्रयागराज। नगर के शिक्षाविदों, साहित्यानुरागियों ने युग प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनका श्रद्धापूर्ण स्मरण किया।
 पंडित देवीदत्त शुक्ल-रमा दत्त शुक्ल शोध संस्थान के तत्त्वावधान में शुक्रवार को इंडियन प्रेस चौराहे पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रतिमा के ६२ वें स्थापना-दिवस पर विचार-गोष्ठी भी आयोजित की गई। उल्लेखनीय है कि १२ जनवरी, १८६२ को इण्डियन प्रेस चौराहे पर  स्थापित आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की इस प्रतिमा का लोकार्पण राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने किया था, जो आचार्य द्विवेदी के प्रमुख शिष्य थे। संस्थान के सचिव व्रतशील शर्मा ने विषय-प्रवर्तन के क्रम में बताया कि जिस  समय इस प्रतिमा की स्थापना हुई थी, तब मैं ७ वर्षीय बालक था । मुझे अपने बाबा जी की गोद में बैठकर उस ऐतिहासिक कार्यक्रम को देखने का दुर्लभ सौभाग्य प्राप्त हुआ था। प्रतिमा इन्दौर के शासकीय कला महाविद्यालय के प्राचार्य श्री देवकृष्ण जोशी जी की देख-रेख में निर्मित हुई थी। यह प्रतिमा इसीलिए भी महत्त्वपूर्ण थी की उस समय सार्वजनिक स्थान पर स्थान पर किसी साहित्यकार की स्थापित होनेवाली पहली प्रतिमा थी । दुर्लभ संयोग यह भी है की जिन आचार्य जी की प्रतिमा के स्थापना-दिवस पर हमसब यहाँ एकत्रित हुए हैं, उन्होंने १२३ वर्ष पूर्व, सन् १९०० में, ‘अयोध्या का विलाप’  शीर्षक जो मार्मिक और ऐतिहासिक कविता लिखी थी, वह आज अयोध्या में निर्मित हो रहे प्रभु श्रीराम के भव्य-दिव्य मन्दिर के परिप्रेक्ष्य में और भी प्रासंगिक एवं महत्त्वपूर्ण हो गई है । इसीलिए इस अवसर पर उपस्थित लोगों को ‘अयोध्या का विलाप’  कविता पर केन्द्रित स्मृति-फलक फलक समर्पित किया जा रहा है ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर गिरीशचंद्र त्रिपाठी ने कहा कि गुलामी के कालखंड में जब पूरा देश आत्म-विस्मृति का शिकार-सा हो गया था, तब आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जैसे श्रेष्ठ और सांस्कृतिक बोध से भरे साहित्यकारों ने देश की जनता को जीवन मूल्यों और संस्कृति का बोध कराया। प्रो० त्रिपाठी ने आवाहन किया कि मानवता की रक्षा के लिए साहित्यकारों के संदेश जन-जन तक पहुँचाए जाएँ। साहित्य और साहित्यकार देश-समाज और परिवार को प्रेरणा का संदेश देते हैं, जिससे पाठक-समाज-देश  आगे बढ़ता है । आज कर्तव्यों को भूलकर अधिकारों की होड़ लगी हुई है इसीलिए सामाजिक समस्याएं बढ़ रही हैं, जबकि आचार्य द्विवेदी के युग में पहले कर्तव्य और फिर अधिकार की बात होती थी।  स्वस्थ समाज की रचना के लिए अधिकारों  के स्थान पर नागरिक कर्तव्यों का पालन करें, तब अधिकार तो स्वतः ही मिल जाएंगे। प्रो० त्रिपाठी ने कामना की यह कार्यक्रम अगले वर्ष और वृहद स्तर पर हो तो उत्तम होगा। प्रधानाचार्य डॉक्टर मुरारजी त्रिपाठी ने कहा कि आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने ‘अयोध्या का विलाप’ कविता लिखकर १२३ वर्ष पूर्व देश के जन-मानस की भावनाओं का अत्यंत मार्मिक शब्दों में प्रगटीकरण किया था। वे युग-प्रवर्तक ही नहीं युग-द्रष्टा भी थे। उन्होंने पूरे देश की सुप्त चेतना को  जगाया तथा आम जन-मानस को झकझोरने  का काम किया था।
भाजपा काशी क्षेत्र के उपाध्यक्ष अवधेशचंद्र गुप्त ने कहा कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने अपनी साहित्यिक साधना से प्रयाग  के गौरव को बढ़ाया।   साहित्यकारों   बुद्धिजीवियों को उनसे प्रेरणा मिलती रहे,  इसीलिए इस प्रतिमा की स्थापना की गई थी। इसके लिए सभी हिन्दीप्रेमी इण्डियन प्रेस के ऋणी रहेंगे। विगत वर्षों से १२ जनवरी के दिन प्रतिमा-स्थल पर आयोजन की जो परम्परा पड़ी है, वह और आगे बढ़े, इसके लिए हम सब कृतसंकल्पित हैं ।
 कटरा व्यापार मण्डल के अध्यक्ष गोपालबाबू जायसवाल ने कहा कि आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी कि यह प्रतिमा साहित्य-साधकों को समाजोन्मुख चिंतन करने की हमेशा प्रेरणा देती रहेगी। क्षेत्रीय पार्षद एवं समाजसेवी आनंद घिल्डियाल ने आभार प्रदर्शन तथा वेदप्रकाश पांडे ने कुशल संचालन किया ।
  इस अवसर पर सुधीरकुमार गुप्त, विपुल मित्तल, विभूति द्विवेदी, डा० नित्यानन्द, डा० प्रमोद शुक्ल, अमित गोस्वामी, अनिल कनौजिया, लोकेश मुखर्जी, चन्द्रिकाप्रसाद त्रिपाठी, शक्ति सिंह, रमेश कुमार, मनोज गुप्त, अभिषेक गुप्त, रोहित बत्रा, हर्षित, सौरभ, रमेश कुमार आदि उपस्थित रहे ।

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