प्रयागराज। सतुआ बाबा सेवा शिविर में काशी के जगद्गुरू डॉ रामकमलदासवेदान्ती जी महाराज ने श्रीरामचरितमानस प्रवचन करते हुये कहाँ कि धरती पर जब भी असुरों का अत्याचार अनाचार बड़ते के कारण धर्म कि हानि होती है तब तब भगवान अवतार लेकर अपने चरित्र के द्वारा मानव समाज की श्रेष्ठ पचपर चलने कि प्रेरणा देते हैं।
हमें जन्म जन्मान्तरों के पूथ्यों पठयों के आधार पर मानव जीवन की प्राप्ति होती है, मनुष्य की सत्कर्म करते हुये मानवजीवन को सास्थक बनाना चाहिए। अभिमान साधक के जीवन में सबसे बड़ी बुराई है। सन्त के बीवन में अभिमान का प्रवेश होते ही उसकी सकरी साधना समाप्त होनानी – है. वेदों और पुराणों में महर्षि नारद जी का अत्यन्त अद्भुत चरिख बताया गया है, वे प्रत्येक लोक में लोक कल्याण की भावना से ही भ्रमण किया करते हैं लेकिन उन महर्षि नारजी को जब कामदेव उनकी तपस्या से विचलित नहीं कर पाया तो नारदजी के जीवन में इतना बडा अभिमान पैदा हुआ कि वे भगवान शङ्करजी को भी अपने से छोड़ा समझने लगे, जिसके कारण उनका अज्ञान नष्ट होगया और उन्हें बन्दर बनना बड़ा। अभिमानी प्राणी को एकना एकदिन शर्म से धिरुना पड़ता है, श्रीरामकथा में अभिमान की नष्ट करने की कई बार प्रेरणा दिगई है।
‘क्योंकि अभिमान व्यक्ति हि नहीं उसके व्यक्तित्व के भी नष्ट करने का सामर्थ्य रखता है, अभिमानिव्यक्ति काम और कोध के वशीभूतहरों अपने धर्म और कर्तव्य से च्युन होनाता है, और अधर्ममार्ग पर अग्रसर होने लगता है। महि महर्षि नारदजी के चरित्र से यह प्रेरणा मिलती है, कि हम अभिमान से परिभूत है स्वधर्म का परित्याग न करें। कथा के शुभारम्भ में परमपूज्य जगद्गुरु विष्णु स्वामी परप्रतिष्टित ष्टित सतुमा बाबा श्री सन्तोष दासजी महाराज ने व्यासपीक को पूजन कर कहा बाबा कहा कि सतुआ सेवा शिबिर कि माहामेला प्रयाग में एक माह के लिए प्रतिवर्ष होती है। श्री सनुभाबाबा सेवा शिविर का मूलउलेश भटकते हुये की सत्पथ पर लाना हि है।