भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतम् संस्कृतिस्तथा ।
संस्कृत दिवस श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जिस दिन पूरा देश रक्षाबंधन मनाता है, बहने अपने भाई को रक्षासूत्र या राखी बांधती हैं, पुरोहित अपने यजमानों को रक्षासूत्र बांधते हैं वही दिन संस्कृत दिवस होता है, इस दिन वैदिक बटुकजन श्रावणी पर्व मनाते हैं, उसी दिन को संस्कृत दिवस मानते हैं “एकोऽहं बहुस्याम” की ब्रह्म आकांक्षा जिस दिन पूरी हुई वह दिन श्रावणी पूर्णिमा का था, वैदिक काल में इस दिन विद्यार्थी गुरुकुल में प्रवेश करते थे और शिक्षक विद्यार्थी की कलाई में रक्षासूत्र पहनाकर उसकी सुरक्षा का संकल्प लेते थे, क्योंकि गुरुकुल में विद्यार्थियों की सुरक्षा और अध्यापन की दायित्व गुरु के ही ऊपर होता था ।
संस्कृत देववाणी है, देवत्व के ह्रास के साथ संस्कृत पढ़ने सीखने और बोलने की प्रवृत्ति का भी ह्रास हुआ, संस्कृत की जिन कक्षाओं में कुर्सियाँ ४०-५० विद्यार्थियों से भरी रहती थी, अब उन कक्षाओं में ४-५ विद्यार्थी पढ़ते हैं,आजकल संस्कृत के लोग अग्रेजी भाषा में हस्ताक्षर करते है, संस्कृत के विद्वान अपनी बोलचाल की भाषा में अग्रेजी शब्दों का प्रयोग करते हैं, संस्कृत के शिक्षक अपने नई पीढ़ी को संस्कृत से दूर रखकर अग्रेजी पढ़ाते है । आप अग्रेजी पढ़ाइये लेकिन संस्कृत से दूर मत कीजिए अपने बच्चों को। प्रोफ़ेसर मैकडोनाल्ड ने कहा है कि संस्कृत साहित्य का यूरोप पर इतना अधिक बौद्धिक ऋण है कि उसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता ।डॉक्टर संपूर्णानंद ने कहा था कि संस्कृत न केवल जीवित है अपितु यह मृत को जीवित करने की औषधि है ।
संस्कृत संसार की प्राचीनतम भाषा है, ग्रीक लैटिन फारसी और फ्रेंच जर्मन और अनेक यूरोपीय भाषाओं में संस्कृत के शब्द उसी रूप में या कुछ मिलते जुलते रूप में मिलते हैं। इस प्रकार सभी भाषाओं के शब्दों की संस्कृत के शब्दों से समानता इसे सभी भाषाओं की जननी प्रमाणित करती है ।दुनिया का पहला ग्रंथ ऋग्वेद संस्कृत भाषा में उल्लिखित है, इसलिए कहा जाता है कि इस भाषा की उत्पत्ति वैदिक काल से जुड़ी हुई है, यह वैदिक काल की लोकभाषा थी और इसके विकास ने न केवल भारतीय अपितु वैश्विक संस्कृति, धर्म,
और विज्ञान की धारा को प्रभावित किया है । महर्षि पाणिनि ने अष्टाध्यायी में इसे व्याकरण के सूत्रों में नियमबद्ध परिभाषित किया , उसके बाद कात्यायन ,पतंजलि , वरदराज ने भी समय समय पर इसे परिमार्जित किया ।
संस्कृत भाषा न केवल एक संवाद का साधन है, बल्कि यह मानव जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है। यह ज्ञान, संस्कृति, समाज, और व्यक्तित्व विकास का आधार है, जो हमें एक-दूसरे से जोड़ती है और समाज को संगठित और समृद्ध बनाती है। कोई भी भाषा अगर आमजन की बोलचाल और संवाद की भाषा होती है तभी जीवंत रहती है, संस्कृत को आम बोलचाल की भाषा बनाना चाहिए, जो लोग संस्कृत पढ़ते पढ़ाते या जानते है उन्हें इसे लोकव्यवहार में भी अपनाना चाहिए, उन्हें अपने परिवार और समाज के लोगो के साथ संस्कृत में संवाद व्यवहार बर्ताव करना चाहिये । संस्कृत भाषा भारतवर्ष की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और प्रचारित करने का कार्य करती है। यह भारतीय समाज की पहचान का एक महत्वपूर्ण अंग है, इससे भारत की परंपराएं, रीति-रिवाज, और मूल्य जुड़े होते हैं। संस्कृत भाषा ज्ञान के संचरण का माध्यम है। संस्कृत भाषा में चार वेद, आरण्यक, १०८ उपनिषद्, रामायण, महाभारत , १८ पुराण, स्मृतियाँ, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, पतंजलि का योगसूत्र, वात्स्यायन का कामसूत्र, आयुर्वेद के ग्रंथ चरकसंहिता और सुश्रुतसंहिता, आर्यभट्ट का गणित और खगोलशास्त्र , भास्कराचार्य का खगोल और भूगोलशास्त्र और बहुत संस्कृत भाषा में है। शिक्षा के क्षेत्र में संस्कृत भाषा की भूमिका केंद्रीय है, क्योंकि यही माध्यम है जिसके द्वारा सभी विषयों के ज्ञान का आदान-प्रदान और प्रसार होता है। विभिन्न विषयों का अध्ययन और शोध संस्कृत भाषा के माध्यम से ही संभव होता है।संस्कृत भाषा सामाजिक एकता और सामंजस्य को बनाए रखने में सहयोग करती है। यदि भारत के विभिन्न प्रान्त के लोग संस्कृत भाषा बोलें तो वे एक दूसरे के साथ बेहतर तरीके से जुड़ सकते हैं, जिससे सामाजिक समरसता और सहयोग बढ़ेगा संस्कृत भाषा का ज्ञान व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह व्यक्ति की सोच, विचारधारा, और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करती है। भाषा के माध्यम से व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक और नैतिक पहचान को भी समझता और संवारता है।
दुनिया में लगभग 7,000 भाषाएँ बोली जाती हैं। इन भाषाओं में से अधिकांश स्थानीय या क्षेत्रीय स्तर पर बोली जाती हैं, और कुछ ही भाषाएँ वैश्विक स्तर पर प्रचलित हैं।अंग्रेज़ी सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली वैश्विक भाषा है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार, शिक्षा, विज्ञान, और संचार की प्रमुख भाषा बन गई है। मंदारिन चीनी दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली मातृभाषा है, विशेष रूप से चीन और ताइवान में बोली जाती है, हिंदी भारत की प्रमुख भाषा है और यह व्यापक रूप से बोली जाती है। इसे बोलने वालों की संख्या में यह संसार में दूसरे या तीसरे स्थान पर आती है। स्पेनिश स्पेन, अधिकांश लैटिन अमेरिकी देशों, और अमेरिका के कुछ हिस्सों में बोली जाती है, और यह दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली मातृभाषा है। अरबी भाषा मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के कई देशों में बोली जाती है और इस्लाम के पवित्र ग्रंथ, कुरान, की भाषा भी है। फ्रेंच भाषा कई देशों में आधिकारिक भाषा है, विशेष रूप से अफ्रीका, यूरोप, और कनाडा में। यह एक प्रमुख राजनयिक भाषा भी है। रूसी भाषा रूस और पूर्व सोवियत संघ के देशों में व्यापक रूप से बोली जाती है।बंगाली मुख्यतः बांग्लादेश और भारत के पश्चिम बंगाल में बोली जाती है और यह दुनिया की बड़ी भाषाओं में से एक है।पुर्तगाली ब्राजील, पुर्तगाल, और अफ्रीका के कुछ देशों में बोली जाती है।आधुनिकता और वैश्वीकरण के कारण कई भाषाएँ विलुप्ति के कगार पर हैं। भाषाविदों के अनुसार, अगर प्रयास नहीं किए गए, तो इस सदी के अंत तक संस्कृत सहित लगभग 50% भाषाएँ विलुप्त हो सकती है ।
भाषाएँ केवल संचार के साधन नहीं हैं; वे संस्कृति, इतिहास, और ज्ञान की धरोहर भी हैं। संस्कृत अपने में एक अनूठी दृष्टिकोण और दुनिया को देखने का तरीका समेटे हुए है, और इसलिए इस भाषा का संरक्षण और सम्मान आवश्यक है।
पुराने ऋषियों ने बहुत सोच समझकर संस्कृत के वैदिक मंत्रों को षोडश संस्कारों से जोड़ दिया था, इससे विवाह यज्ञोपवीत आदि सभी संस्कारों में वैदिक मंत्रोपचार करने वाले पुरोहित संस्कृत में मंत्रोपचार करते हैं, सभी नये कार्य के आरम्भ में पुरोहितों के वैदिक मंत्रोपचार से ही होता है, इन वैदिक मंत्रोपचार से समाज में संस्कृत के प्रति श्रद्धा भाव जागृत होता है, संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार का सर्वोत्तम माध्यम तो वैदिक मंत्रोपचार ही है,संस्कृत का तात्कालिक सर्वसुलभ प्रयोग कर्मकाण्ड के क्षेत्र में हैं, संस्कृत के विद्वान कर्मकाण्ड को हेय दृष्टि से देखते हैं, वरिष्ठ आचार्यजन कर्मकाण्डी विद्यार्थियों का उपहास उड़ाते है । किसी भी भाषा का प्रचलन तभी बढ़ेगा जब वह समाज के लिए उपयोगी हो, संस्कृत भाषा का दैनिक जीवन में प्रयोग घटता जा रहा है, संस्कृत हिन्दी में परिवर्तित हो गई, और हिन्दी में भी अग्रेजी शब्दों के प्रयोग के कारण हिन्दीग्लिश में परिवर्तित हो गई है,संस्कृत भाषा व्याकरण आदि पढ़ने के साथ व्यवहारिक संस्कृत को विकसित करना होगा । संस्कृत का प्रायोगिक पक्ष योग, आयुर्वेद, ज्योतिष, दर्शनशास्त्र, संस्कार के कर्मकाण्ड कथा वाचन , नैतिक शिक्षा , प्रेरक प्रसंग की शिक्षा देना आदि अनेक विषयों को संस्कृत से जोड़कर भी संस्कृत को और लोकप्रिय बनाया जाना चाहिये । भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी प्रतिवर्ष संस्कृत दिवस पर संस्कृत में शुभ कामनायें देकर संस्कृत के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं, लेकिन अब आवश्यकता है कि देश के सभी क्षेत्र के प्रमुखजन संस्कृत को लोकप्रिय बनाने में अपना सहयोग करें । आप सबको संस्कृत दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं।
डा बिपिन पांडेय, अध्यक्ष विश्व पुरोहित परिषद